Bagaha : चार शल्य चिकित्सकों के लौटाने के बाद होमियोपैथिक दवा से ठीक हुआ मरीज
होमियोपैथिक उपचार से बची पैर काटने की नौबत, 22 किलो वजन से उठकर फिर खड़ा हुआ मरीज
न्यूज़ 9 टाईम्स पश्चिमी चंपारण बगहा से नवल ठाकुर की ब्यूरों रिपोर्ट -
कोरोना काल में बिगड़ी तबीयत के बाद लगभग जिंदगी से हार चुके डैनमवरा (रामनगर) निवासी उमेश शर्मा ने होमियोपैथिक उपचार से नए जीवन की उम्मीद पाई। गंभीर बीमारी और लगातार बिगड़ते स्वास्थ्य के चलते डॉक्टरों ने उनका पैर काटने तक की सलाह दे दी थी, लेकिन बगहा स्थित होमिया सेवा अस्पतालमें इलाज कराने के बाद उनकी स्थिति में उल्लेखनीय सुधार हुआ है।उमेश शर्मा ने बताया कि कोरोना काल में तबीयत बिगड़ने के बाद उन्होंने रामनगर, नरकटियागंज और बेतिया में अंग्रेजी दवा ली। हालांकि सुधार न होने पर पटना ले जाया गया, जहां नस काटने और सर्जरी जैसे गंभीर उपचार किए गए। उन्होंने कहा कि “इलाज में घर, जमीन और करीब दस लाख रुपये से अधिक खर्च हो गए। डॉक्टरों ने लखनऊ रेफर किया। वहां भी नस काटकर सर्जरी की गई और कहा गया कि पैर काटे बिना कोई रास्ता नहीं है। कुछ डॉक्टरों ने कैंसर होने की भी आशंका जताई।परिवार और गांव वालों की सलाह पर जब वे पैर कटवाने की तैयारी के साथ घर लौटे, तभी किसी ने उन्हें बगहा स्थित होमिया सेवा अस्पताल श्रीनगर बगहा जाने की सलाह दी। उमेश ने बताया, मैं पहली बार एंबुलेंस से डॉक्टर पदमभानु सिंह के पास पहुंचा। उन्होंने विश्वास दिलाया कि पैर नहीं कटेगा और मुझे ठीक कर देंगे। उस समय मेरा वजन 22 किलो रह गया था। आज 60 किलो है। बेटे, पत्नी और साले ने उस कठिन समय में बड़ा साथ दिया।इस संबंध में होमियोपैथिक चिकित्सक डॉ. पदम भानु सिंह ने बताया कि जब मरीज उनके पास लाया गया, तब उसके पास चार शल्य चिकित्सकों की पर्ची थी और उसके बयान के अनुसार करीब तीस लाख रुपये इलाज में खर्च हो चुके थे। उसका वजन सिर्फ 22 किलो रह गया था और दो दिन बाद उसका पैर काटा जाना था। जांच के बाद मैंने उसे भरोसा दिलाया कि इलाज संभव है। आज मरीज सामान्य व्यक्ति की तरह चलने-फिरने में सक्षम है।उमेश का मामला क्षेत्र में चर्चा का विषय बना हुआ है। परिवार इसे “दूसरी जिंदगी” मान रहा है, जबकि चिकित्सक इसे चिकित्सा पद्धति पर मरीज के विश्वास और निरंतर इलाज का परिणाम बता रहे हैं।
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